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कविता

दुलरुई धिया अलसाय

अशोक द्विवेदी


चिरई बोलेले भिनुसहरा
दुलरुईं धिया अलसाय
माई के देहिया प भिरिया के परबत
रोजे अरराय

भोरे उठि अँगना बहारसु झिरिकसु
चउका बसनवा के सोच
हियरा के निर्मल अएना प लागल
कतने खरोंच
आल्ह र बछिया ना सकिहें ससुरवा
मन घबराय

सभका से पहिले बा उठहीं के बबुनी
सभका से बाद में नीन
सभ गुन आगर रहलो प बेटी
माई के अँचरा बा खीन
चमकऽ तू बनि के किरिनिया
अन्ह रिया मन के पराय

खेतवा के कटिया चढ़ल बा चइतवा
भइया गइले भोरे खरिहान
धिया! बाटे हमनी के खेतिए ले असरा
एही में बियाह आ दान
फरहर गिहिथिन चुटुकी में कमवा
देले ओरियाय

चिरई बोलेल भिनुसहरा
दुलरुई धिया अलसाय

 

 


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